मेरे गांव की यही निशानी रही

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

राहों पे बाट जोहती जवानी रही
मेरे गाँव की यही निशानी रही

जो कदम गए , कभी लौटे नहीं
सदियों तलक यही परेशानी रही

पनघट, खेत, नदी-नाले रोते रहे
दिन-रात हर जगह वीरानी रही

माँ को सोए हुए एक अरसा हुआ
हर घर कहती यही कहानी रही

सब दोस्त तड़प उठे विदाई पर
सीने की उफ़क बेज़ुबानी रही

खत में नाम-पता सब दिखता है
बेचैन होती हुई रूह सयानी रही

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सलिल सरोज
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