सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)
दरिया भी देखा,समन्दर भी देखा और तेरे आँखों का पानी देख लिया
दहकता हुश्न,लज़ीज नज़ाकत और तेरी बेपरवाह जवानी देख लिया
कचहरी,मुकदमा,मुद्दई और गवाह सब हार जाएँगे तेरे हुश्न की जिरह में
ये दुनियावालों की बेशक्ल बातें देखी और तेरे रुखसार की कहानी देख लिया
किताबें सब फीकी पड़ गयी तेरी तारीफ के सिलसिले हुए शुरू ज्योँ ही
चौक-चौराहे और गली-मोहल्ले में तेरी क़यामत के चर्चे बेज़ुबानी देख लिया
तुमसे मिलने से पहले तक कितनी बेरंग थी मेरी तमाम हसरतें नाकाम
तुमसे मिलके मैंने कायनात में गुलाबी,नीली,हरी और आसमानी देख लिया
तुम चलो जहाँ हवाएँ चल पड़ती हैं और रुको ज्यों तो धरती रो पड़ती है
तुम्हारा रहम देखा,तुम्हारा करम देखा और तुम्हारे हुश्न की मनमानी देख लिया
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सलिल सरोज
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