इस हसीन शहर में बसिए ज़रा

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

क़त्ल कीजिए और हँसिए ज़रा
इस हसीन शहर में बसिए ज़रा

बाँहों में कैद दरिया तो घुट गया
अब दो बूँद पानी को तरसिए ज़रा

बेवक़्त बरसात होके दूजों तबाह किया
कभी अपने आँगन में भी बरसिए ज़रा

सुना बहुत ख़ौफ़ में ज़माने में आपका
फिर तबियत से खुद पे भी गरजिए ज़रा

सब काम तो खुदा ही नहीं कर देगा
आप भी हुज़ूर कुछ रात जगिए ज़रा

संपर्क:
सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली-110009
Email: salilmumtaz@gmail.com

जीवन दर्शन: दुनिया मेरी नज़र से

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

ये प्रश्न बड़ा गूढ़ है
कि जीवन बदलता है
या परिस्थितिवश मानव
और कैसे बदल जाते हैं
संग उनके मानवीय मूल्य
जिसके विकास और ह्रास
की अवधारणा इतिहास के पन्ने तय कर देती है
या फिर कोई अभेद्य विचार धाराएँ

जीवन अनवरत अपनी गति से बहती चली जाती है
किसी उच्छृंखल नदी की भाँति
अपने गन्तव्य को पाती चली जाती है

समय के कालखंड पे
आशा-निराश के परिधि पे
मनःस्थिति जब अनुकूल हो तो
जीवन सावन की बौछार लगता है
जब मनःस्थिति प्रतिकूल हो तो
जीवन खाली और बेजार लगता है

ये सब दशा और दिशाओं का खेल है
हृदय और मस्तिष्क का अपरिहार्य मेल है
जीवन की सार्थकता उसको भरपूर जीने में है
उसके बाद मौत आए तो,वो ज़हर भी पीने में है

जीवन हर पल,हर क्षण,हर घड़ी
महसूस करने की चीज़ है
इसे न समझ कर ययाति की तरह भटकना कितना अजीब है

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