चोरी-छिपे ही मोहब्बत निभाता रहा

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

वो गया दफ़अतन कई बार मुझे छोड़के
पर लौट कर फिर मुझ में ही आता रहा

कुछ तो मजबूरियाँ थी उसकी अपनी भी
पर चोरी-छिपे ही मोहब्बत निभाता रहा

कई सावन से तो वो भी बेइंतान प्यासा है
आँखों के इशारों से ही प्यास बुझाता रहा

पुराने खतों के कुछ टुकड़े ही सही,पर
मुझे भेज कर अपना हक़ जताता रहा

शमा की तरह जलना उसकी फिदरत थी
पर मेरी सूनी मंज़िल को राह दिखाता रहा

संपर्क:
सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली-110009
Email: salilmumtaz@gmail.com

मेरे गांव की यही निशानी रही

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

राहों पे बाट जोहती जवानी रही
मेरे गाँव की यही निशानी रही

जो कदम गए , कभी लौटे नहीं
सदियों तलक यही परेशानी रही

पनघट, खेत, नदी-नाले रोते रहे
दिन-रात हर जगह वीरानी रही

माँ को सोए हुए एक अरसा हुआ
हर घर कहती यही कहानी रही

सब दोस्त तड़प उठे विदाई पर
सीने की उफ़क बेज़ुबानी रही

खत में नाम-पता सब दिखता है
बेचैन होती हुई रूह सयानी रही

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सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली-110009
Email: salilmumtaz@gmail.com