जीवन दर्शन: दुनिया मेरी नज़र से

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

ये प्रश्न बड़ा गूढ़ है
कि जीवन बदलता है
या परिस्थितिवश मानव
और कैसे बदल जाते हैं
संग उनके मानवीय मूल्य
जिसके विकास और ह्रास
की अवधारणा इतिहास के पन्ने तय कर देती है
या फिर कोई अभेद्य विचार धाराएँ

जीवन अनवरत अपनी गति से बहती चली जाती है
किसी उच्छृंखल नदी की भाँति
अपने गन्तव्य को पाती चली जाती है

समय के कालखंड पे
आशा-निराश के परिधि पे
मनःस्थिति जब अनुकूल हो तो
जीवन सावन की बौछार लगता है
जब मनःस्थिति प्रतिकूल हो तो
जीवन खाली और बेजार लगता है

ये सब दशा और दिशाओं का खेल है
हृदय और मस्तिष्क का अपरिहार्य मेल है
जीवन की सार्थकता उसको भरपूर जीने में है
उसके बाद मौत आए तो,वो ज़हर भी पीने में है

जीवन हर पल,हर क्षण,हर घड़ी
महसूस करने की चीज़ है
इसे न समझ कर ययाति की तरह भटकना कितना अजीब है

संपर्क:
सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली-110009
Email: salilmumtaz@gmail.com

शूद्र

सलिल सरोज
नौलागढ़, बेगूसराय (बिहार)

 

मैं पैदा इंसान अवश्य हुआ
पर
शूद्र होना ही मेरी नियति थी
सवर्ण समाज से मेरी व्यथित विसंगति थी
इतिहास दर इतिहास
काल-कलुषित सर्वथा मेरी तिथि थी
एकलव्य,कर्ण, चंद्रगुप्त के विजयध्वजों पे भी
अपमान की कई सदियों बीती थी

किसने अपने स्वेदों में भी शूद्रों को हिस्सा माना है
घर,बर्तन,कुएँ, चौराहे बाँटने का रिवाज जाना पहचाना है
मल-मूत्र की व्याकरण के ही ये हक़दार
वेद,पुराण,ग्रंथ,मनुस्मृति सबको यही तो समझना है

राजतंत्र,प्रजातंत्र,स्वतंत्र या परतंत्र
हर तंत्र यह समझने में असमर्थ है
जो करे सेवा तत्पर होके वही अधम और अनर्थ है
शिक्षा,दीक्षा,धर्म,ज्ञान सब जाति के आगे व्यर्थ हैं

सामाजिक रचनाओं में कितनी इनकी हिस्सेदारी है
गर कुछ भी नहीं,तो ये किसकी जिम्मेदारी है
कभी सत्ता,कभी ताकत,कभी मद तो कभी नीतिगत अलगाव
इनके अधिकारों पे किसकी अवैध जागीरदारी है

समय का व्यूह घूम फिर कर वही परिणीति पाता है
इतिहास भेष बदल-बदल कर खुद को ही दोहराता है
कल तक भाषा,बोली,खान-पान,पहनावे में
तो आज नौकरी,पेशे,न्याय,सम्मान और प्राण पे सूली गड़ जाता है

ये भाषणों के झूठे वायदे बनकर बिकते रहे
बहुत कोशिशों के वावजूद अलग-थलग ही दिखते रहे
कैसा घर,कैसा समाज,कैसा देश-सब अपरिचित
इन सबने जो द्वेष सिखाया, ये बस वही सीखते रहे

इसी संशय में शूद्र जीवन का सूर्यास्त आ गया
कि अब तो बराबरी का मौका मिलेगा ग्रस्त आ गया
वही घुटन,वही कोफ़्त,वही घिन्न और वही आत्मग्लानि
से थक कर चूर,अपनी बेगैरत ज़िन्दगी से त्रस्त आ गया

संपर्क:
सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली-110009
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